नमस्ते का महत्व

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हिंदू जब किसी से भी मिलते है तो उसे नमस्ते शब्द से अभिवादन करते हैं। नमस्ते में नमन का भाव है। शास्त्रों में पांच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है “नमस्कार”। नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करें तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया। नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नहीं। आध्यात्म की दृष्टी से इसमें मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है। नमस्ते करते समय दोनों हाथों को जोड़ कर एक कर दिया जाता है। जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये। बहुत से भारतीय लोगों से मिलते हैं तो नमस्ते कहने की बजाय “राम राम” कहना अधिक पसंद करते हैं। राम शब्द कानों में पढ़ते ही भगवान श्री राम का स्मरण हो जाता है। “राम राम” से भाव है एक राम मुझमें है और एक राम आपके अन्दर है।जो व्यक्ति “राम राम” कहता है वह यह सन्देश देना चाहता है की,” मैं इस कलयुग में भगवन श्री राम जैसा आचरण रखता हूं और जिसके बदले में मैं आपसे मर्यादा पुरषोत्तम के जैसा ही आचरण चाहता हूं।” राम नाम केवल दो शब्द नहीं है बल्कि राम-नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान है। राम नाम जाप से ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। लौकिक और वैदिक जितने भी शब्द हैं, वे सब श्रीरामचन्द्रजी के ही नाम हैं। किन्तु सहस्त्रनाम उन सबमें अधिक है और उन सहस्त्रनामों में भी श्रीराम के एक सौ आठ नामों की प्रधानता अधिक है। श्रीविष्णु का एक-एक नाम ही सब वेदों से अधिक माना गया है। वैसे ही एक हजार नामों के समान अकेला श्रीराम-नाम माना गया है। जो सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदों का जप करता है, उसकी अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम-नाम से उपलब्ध होता है। कलयुग में भगवान राम का नाम ही तारेगा , राम के नाम के बिना मुक्ति नहीं ! “हे अर्जुन! ब्रहमलोकपरयन्त सब लोक पुनरानर्ती हैं, परन्तु हे कुन्तीपुत्र! मुझको प्राप्त होकर पुनरजन्म नहीं होता; क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादी के लोक काल के द्नारा सीमीत होने से अनित्य हैं। ~~(श्रीमद्भग्वद् गीता )


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